राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर तेज होता आंदोलन; राज्य और केंद्र दोनों से हैं आस : दिलीपसिंह भाटी
भाषाई तौर पर स्वतंत्र पहचान देने की मांग देश के आजाद होते ही हो गई थी, सबसे पहले भाषाई आधार पर आंध्रप्रदेश का गठन हुआ तथा उसके बाद भारतीय राजनीति में भाषा हमेशा राजनीतिक मुद्दा बना रहा. लेकिन आठकरोड़ से अधिक राजस्थानियों की लड़ाई भाषाई तौर पर अलग राज्य की नहीं बल्कि अपनी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की है जो विगत छह दशकों से जारी है.

भाषाई तौर पर स्वतंत्र पहचान देने की मांग देश के आजाद होते ही हो गई थी, सबसे पहले भाषाई आधार पर आंध्रप्रदेश का गठन हुआ तथा उसके बाद भारतीय राजनीति में भाषा हमेशा राजनीतिक मुद्दा बना रहा. लेकिन आठकरोड़ से अधिक राजस्थानियों की लड़ाई भाषाई तौर पर अलग राज्य की नहीं बल्कि अपनी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की है जो विगत छह दशकों से जारी है.
पिछले दिनों राजस्थानी युवा समिति के राष्ट्रीय सलाहकार राजवीरसिंह चलकोई के नेतृत्व में जोधपुर, जयपुर, और उदयपुर शहर में हजारों की संख्या में युवाओं ने उपस्थिति दर्ज कर राजस्थानी भाषा की नजरअंदाजगी को लेकर नाराजगी जताई वहीं राज्य सरकार से राजभाषा का दर्जा देने व केंद्र सरकार से राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की. युवा समिति द्वारा संभाग स्तर पर राजस्थानी भाषा हेतु जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं तथा सिनेमाघरों में राजस्थानी फिल्मों को मुफ्त में दिखाया जा रहा है. इस आंदोलन की खास बात यह है कि यह आंदोलन पूरी तरह से युवाओं द्वारा संचालित हैं.
मान्यता देने के लिए छह दशकों से उठ रही है मांग
राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर कई दशकों से मांग चली आ रही है.वहीं 2003 में अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, जिस पर तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने (2006 में) सहमति भी जताई थी लेकिन सदन में पेश नहीं हो सका. उसके बाद 2013 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने घोषणापत्र में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का वादा किया था लेकिन सरकार बनने के बाद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. लोकसभा मेंपिछले वर्षों में राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाल, राजसमंद सांसद दीयाकुमारी, चितौडगढ़ सांसद चंद्रप्रकाश जोशी सहित कई सांसद मांग कर चुके है. कुछ महीनों पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकरराजस्थानी भाषा को राज्य में राजभाषा का दर्जा देने की मांग की.
लम्बे समय से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए कई संगठन औरसाहित्यकार काम कर कर रहे हैं लेकिन राजस्थानी युवा समिति के बैनर तले पहली बार बड़े स्तर पर भीड़ उमड़ रही हैं. राजस्थानी युवा समिति के अध्यक्ष अरुण राजपुरोहित बताते है कि जब तक हम अपने राज्य में राजस्थानी भाषा को सम्मान नहीं दे सकते तो केंद्र सरकार से कैसे उम्मीद कर सकते है? इसलिए हमारा पहला लक्ष्य राजस्थानी भाषा को राज्य में राजभाषा का दर्जा दिलाना है, उसके बाद संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की रणनीति पर काम करेंगे. युवा समिति द्वारा संभाग स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा हैं जिसमें हमें बड़ी संख्या में समर्थन मिल रहा है. हमारी मांग को डेढ़ सौ से अधिक विधायक पत्र लिखकर सहमति दे चुके हैं तथा सरकार से भी सकारात्मक सहयोग का आश्वासन मिला है.
राजस्थानी भाषा का है समृद्ध साहित्य और प्राचीन इतिहास
भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के निवासियों की मातृभाषा राजस्थानीहै. भाषा विज्ञान के अनुसार राजस्थानी भारोपीय भाषा परिवार के अन्तर्गतआती है. राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश सेमानी जाती है. सर्वप्रथम उद्योतन सूरि द्वारा आठवीं शताब्दी में लिखितकुवलयमाला नामक पुस्तक में मरू भाषा का उल्लेख मिलता है, जोराजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र की भाषा थी. अबुल फजल ने आईने अकबरी मेंभारत की मुख्य भाषाओं में मारवाड़ी को भी सम्मिलित किया था.
यहां भाषा के लिए 'राजस्थानी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जॉर्ज अब्राहमग्रियर्सन ने 1907-08 ई. में अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया मेंकिया, जो प्रदेश में प्रचलित विभिन्न भाषाओं का सामूहिक नाम था. मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती, हाड़ौती, मालवी आदि राजस्थानी कीबोलियाँ और उपबोलिया हैं.
किसी भी भाषा के घटको में साहित्य प्रमुख तत्व होता है तथा साहित्यिकरचनाओं को भाषा के उद्भव का प्रामाणिक स्रोत माना जाता हैं. सन् 1184 ई. में शालिभद्र सूरि द्वारा रचित भरतेश्वर बाहुबली रास नामक साहित्यिक रचनासन् बताने वाली राजस्थानी भाषा की सबसे प्राचीन पुस्तक है. इसके पश्चात्नयनचंद्र सूरि द्वारा रचित हम्मीर महाकाव्य गिरधर आसिया द्वारा रचितसगतसिंघ रासौ नल्लसिंह द्वारा रचित विजयपाल रासौ सहित कईसाहित्यिक रचनाओं का उल्लेख मिलता हैं. आधुनिक राजस्थानी साहित्य मेंशिवचंद्र भरतिया, चंद्रप्रकाश देवल, चंद्रसिंह बिरकाली, नारायणसिंह भाटी, जहूर खां मेहर, कन्हैया लाल सेठिया, विजयदान देथा, लक्ष्मी कुमारी चुंडावतसरीखे कई नाम शामिल हैं.
बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से राजस्थानी भारत की छह प्रमुख भाषाओंमें एक है और क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थानी भाषा का प्रसार क्षेत्र हिन्दीभाषा के बाद देश में सबसे बड़ा माना जाता है. राजस्थानी भाषा की मान्यता से विभेद राय रखने वाले सवालों के जवाब शिक्षाविद् राजवीरसिंह बड़े तार्किक ढंग से देते है.
कुछ लोगों का मानना हैं कि राजस्थानी; भाषा ना होकर बोली है तथा इसकीस्वयं की कोई लिपि नहीं है इसलिए इसे संवैधानिक मान्यता नहीं दी जासकती.
जहां तक राजस्थानी भाषा की लिपि का सवाल है, राजस्थानी रचनाएं पहलेमुड़िया लिपि में लिखी जाती थी. आजादी के तुरंत बाद पं. गोविन्द वल्लभपंत ने राजस्थान के नेताओं से आग्रह किया कि वो राष्ट्रीय एकता कीतात्कालिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए देवनागरी लिपि का इस्तेमालकरें, इस प्रकार धीरे- धीरे देवनागरी ही राजस्थानी भाषा की लिपि हो गई.संविधान की आठवीं अनुसूची में हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, नेपाली औरमराठी भाषाएं शामिल है जिन्होंने भी देवनागरी लिपि को अपनाया है अतःराजस्थानी भाषा को शामिल किया जा सकता है. बोलियों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि राजस्थानी भाषा विभिन्न बोलियों का सामुहिक रूप है, संपन्न बोलियां किसी भी भाषा की दुर्बलता नहीं अपितु ताकत होती हैइसलिए बोलियां और उप बोलियां इसकी खूबी है. उदाहरण के तौर पर हिंदीऔर पंजाबी में भी कई बोलियां और उपबोलियां हैं ये भाषाएं भी संविधान कीआठवीं सूची में सम्मिलित हैं.
एक प्रश्न उठता है की राजस्थानी में कई बोलियां है किस बोली को मानकराजस्थानी माना जाएं.
किसी भाषा का मानक रूप पहले से मौजूद नहीं होता बल्कि इसका क्रमबद्धविकास होता है जैसे हिंदी अपनाएं जाने के वर्षों तक मानक रूप, वर्तनी, शब्दों पर काम चलता रहा तथा अभी भी चल रहा है. जैसे सन् 1947 मेंआचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए. सन् 1966 मेंमानक देवनागरी वर्णमाला 1983 में देवनागरी लिपि तथा हिन्दी की वर्तनी कामानकीकरण प्रकाशित किया गया. भाषा प्रवाहमयी होती है बदलाव आते हैं, नए शब्द जुड़ते हैं तथा कुछ प्रतिस्थापित होते हैं. अतः हिन्दी की तरह हीराजस्थानी भाषा का क्रमिक रूप से मानक रूप विकसित हो जाएगा. वैसे भी राजस्थानी भाषा के मानक रूप को लेकर कई वर्षों से कार्य हो रहा है तथाराजस्थानी भाषा का अपना शब्दकोश मौजूद है जिसे पद्मश्री सीतारामलालस ने बनाया है जिसमें तीन लाख से अधिक शब्द हैं.
कई जगहों पर राजस्थानी को मिला विशेष सम्मान
भले ही में राजस्थानी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो लेकिन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन स्थापित साहित्य अकादमी की उन 24 भाषाओं में शामिल है जिससे साहित्य पुरस्कार दिए जाते हैं. इन 24 भाषाओं में राजस्थानी, अंग्रेजी सहित आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाएं शामिल हैं. राजस्थानी भाषा के कई साहित्यकारों को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है जो देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है. इन साहित्यकारों में कन्हैयालाल सेठिया, विजयदान देथा, लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, अर्जुनसिंह शेखावत सहित कई नाम शामिल हैं.
राजस्थानी भाषा को शिकागो विश्वविद्यालय के साउथ एशिया विभाग में मान्यता प्राप्त है तथा भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी संवैधानिक दर्जा दिया चुका है. इसके अलावा पश्चिमी राजस्थान से सटे पाकिस्तान के विद्यालयों में राजस्थानी कायदो नामक राजस्थानी व्याकरण पढ़ाया जाता है.
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थानी भाषा से बीए, एमए, एमफिल की जा सकती है. इसके अतिरिक्त यूजीसी नेट परीक्षा में भी राजस्थानी भाषा के चयन का विकल्प मिलता है. सूचना प्रसारण के क्षेत्र में ऑल इंडिया रेडियो और डीडी न्यूज द्वारा राजस्थानी भाषा में समाचारों का प्रसारण किया जाता है. देश और प्रदेश में राजस्थानी भाषा के साहित्यिक ग्रंथों का बड़ा बाजार है, सोशल मीडिया पर बड़ी मात्रा में राजस्थानी भाषा की सामग्री को देखा जा रहा है. यहां तक कि राजस्थान सरकार भी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए राजस्थानी भाषा में विज्ञापन देती आ रही है.
भाषा की मान्यता से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा को लेकर विशेष प्रावधान है. अनुच्छेद 345 में वर्णित है कि यदि राज्य चाहे तो बिना केंद्र की अनुमति के किसी भाषा को राज्य की राजभाषा बना सकता है. इसी के तहत छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ी, मेघालय में खासी और गारो, सिक्किम में भूटिया, लेपचा और नेपाली तथा कई अन्य राज्यों ने उन भाषाओं को राजभाषा का दर्जा दिया हैं जो भाषाएं संविधान की आठवीं अनुचसूची में शामिल नहीं है. इन्हीं राज्यों की तर्ज पर राजस्थान सरकार से भी राजस्थानी को राजभाषा का दर्जा देने की मांग हो रही है.
अनुच्छेद 347 के अंतर्गत राष्ट्रपति राज्य की जनसंख्या के समूह द्वारा बोली जाने वाली भाषा को सबंधित राज्य की राजभाषा बना सकता है.
इसके अतिरिक्त संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को शामिल किया गया है. मूल संविधान में 14 भाषाएं शामिल थी उसके बाद समय-समय पर सिंधी, कोंकड़ी, नेपाली, मणिपुरी, बोडो, डोगरी, मैथिली, और संथाली को शामिल किया. आठवीं अनुसूची में कई राज्य अपने-अपने राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने की मांग करते रहे हैं. इसके लिए किसी भाषा को शामिल करने के लिए कोई विशेष शर्त नहीं है. वर्ष 2016 में लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू बताते है कि किसी भाषा को शामिल करने के लिए आवश्यक शर्तों का निर्धारण करना मुश्किल है. इसके लिए पाहवा समिति (1996) और सीताकांत महापात्रा समिति (2003) भी गठित हुई लेकिन किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच सकी.
राजस्थानी भाषा की प्रासंगिकता
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार विद्यार्थी को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रावधान है, यदि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में मुहैया होगी तो शिक्षक और छात्र के बीच प्रत्यक्ष संवाद स्थापित होगा. एक भाषा क्षेत्र और स्थान विशेष की सभ्यता और संस्कृति का परिचायक होती है यदि भाषा लुप्त हो जायेगी तो धीरे-धीरे संस्कृति तथा उससे जुड़े किस्से कहानियां खत्म हो जाएगी. राज्य में राजभाषा का दर्जा देने से राजस्थानी भाषा का प्रशासन में प्रयोग बढ़ेगा, आने वाले समय में भाषा के क्षेत्र में विशिष्टता को वरीयता मिलेगी तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों में कमी आयेगी एवं स्थानीय लोगों को अधिक अवसर मिलेंगे. साहित्य, प्रकाशन और उसके पाठकों में वृद्धि होगी. राजस्थानी भाषा की फिल्मों को प्रोत्साहन मिलेगा, स्थानीय कलाकारों को अपनी कला के प्रदर्शन हेतु मंच मिल सकेगा.
यदि भाषा को संवैधानिक मान्यता दी जाती है तो ‘पधारो म्हारे देस’ का स्लोगन देने वाली राजस्थानी भाषा सिर्फ स्लोगन तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि समृद्ध साहित्य और संस्कृति से देशभर में विशेष पहचान स्थापित करेगी.